नहीं था जब कुछ भी यहां, तिमिर – प्रकाश का जन्म हुआ, तब से लेकर वर्तमान तक, दोनों में संघर्ष हुआ, तिमिर था फैला दूर दूर तक, इसका अपना राज्य था, नहीं था इसमें कुछ भी पनपा, फिर प्रकाश विजयी हुआ, सूर्य रश्मियां फैलीं जैसे ही, नवजीवन का उदय हुआ, छंटा तिमिर – प्रकाशित ब्रह्मण्ड, प्रसन्नता का वास हुआ, केवल एक दीप बहुत है, इस दीवाली तिमिर मिटाने को, प्रज्ज्वलित दीप हो बाहर भीतर, खुशहाली को लाने को, मिटे विकार – छंटे अंधकार, है यही आस दीवाली को।।
दो अक्तूबर को भारत में, दो सुगंधित फूल खिले, पर जीवन भर राहों में, कांटें ही उनको बिछे मिले, विपरीत परिस्थितियों में ही, वह जीवन भर घिरे रहे, पर कभी उन्होंने हार न मानी, संघर्षों में लगे रहे, बापू का स्वदेशी का नारा गूंजा, जब चरखे का चक्र चला, हर इक जन तक खादी पहुंचा, और विदेशी वस्त्र जला, जय जवान जय किसान कहा शास्त्री जी ने, किसानों का उचित सम्मान किया, उनके पराक्रम के चलते सेना ने, पाकिस्तान परास्त किया, आओ हम भी लग जाएं, उनके सपने सच करने में, रंगें देशभक्ति में खुद को, जुट जाएं देश को विकसित करने में, जल-थल-वायु करें साफ, स्वच्छ भारत का लें संकल्प, स्वस्थ तन-मन रखने में, स्वच्छता का नहीं है कोई विकल्प, अब लग जाएं हम स्वच्छता में, आभा से हर कोना दमके, छा जाएं जग के नभ पे, बन के सूरज भारत चमके बन के सूरज भारत चमके ।।
भारतीय संस्कृति थी विश्व में फैली, संस्कृत ही प्रथम भाषा थी, हिंदी इसकी मुंहबोली बेटी थी, और भारत की परिभाषा थी, इस पर काले बादल छाए, घनघोर विष की वर्षा लाए, अरबी फारसी उर्दू आदि ने, इस पर गहरा आघात किया, अंगेजों की अंग्रेजी ने, इसको लगभग समाप्त किया, पर विद्वानों ने अनवरत, इसका भी उपचार किया, लेकर इसको साथ चले, फिर से इसका प्रचार हुआ, राग छुपे हैं इसमें सारे, इसमें छुपा समस्त संगीत, नहीं है बनता इसके बिन, सुगम मनोहर कोई गीत, जन जन के प्राणों में बसती, साहित्यकारों की है मीत, इक दिन ऐसा आएगा फिर से, यह विश्व पटल पर छाएगी, भारत होगा विश्व गुरु, विश्व भाषा हिंदी कहलाएगी, हिंदी ही बोली जाएगी, हिंदी ही बोली जाएगी।
ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका हल…जिसका समाधान…जिसका उपाय…जिसकी काट न हो। चिंता करना मतलब अपनी समस्याओं की आग में और झुलस जाना… बिना आपा खोए शांत बैठकर ठण्डे दिमाग में अपने आप हल निकलते रहते हैं…
ऊपर ऊपर जमी है काई भीतर बहता निर्मल जल नहीं है ऐसा कुछ भी दुर्गम जिसका नहीं है कोई हल तोड़ दीवारें हटा दे रोड़े तान के सीना बढ़ता चल सोच में न यूं मल हाथों को खोज ले मोती गहरे तल कल गया खाली कल क्या होगा यह सोच न देती कोई फल हर पल भीतर भरी है शक्ति व्यर्थ न जाए कोई पल आज अभी से जोर लगा दे नहीं है आता कभी भी कल मिथ्या चिंता यूं जैसे दलदल निज जीवन से करती छल नकारात्मक सोच मरुस्थल सकारात्मक बरसाए जल छोड़ तपिश भरी चिंता को खुशियों के खुल जाएं नल रोक दे लहरें चिंताओं की शांत चित्त रह बिन हलचल नव उत्साह से बढ़ आगे को सब परेशानी होगी हल ।।
रखदा हर इक दा जो ख्याल खुशियां रैंदियां ओसदे नाल पुट्ठा करे न कम जो कोई सिद्दी रैंदी ओसदी चाल भोला भाला है जो दिल दा न फंसदा ओ किसे सवाल करदा न परपंच कोई वी न फैलावंदा है जंजाल ओ सदा ही बच के रैंदा कदे न पैंदा ओसते जाल परेशानी जे आ वी जावे रब रखदा है ओसदा ख्याल जिसदे बारे सोचन रब जी ओसदा सारे पुछदे हाल रख संतोख करम सच करदा सबते होंदा है जो दयाल ओसदे सिर ते सदा ही रैंदा, सबदा मालक दीन दयाल मुसकांवदा जो हर हाल विच संकट ओसदे देंदा टाल मां प्यो बन के रब जी ओसनूं न्यानयां वरगा लैंदा पाल हर वेले जो नाम सिमरदा ओसतों भजदा दूर है काल फुल कमल दे खिड़दे सद ही ओसदे मन मन्दर दे ताल।। जसविंदर सिंह नालागढ़, हि.प्र.
कोरोना ने बहुत कुछ छीना है। पर अगर हार न मानी जाये तो जीत होनी तय है….इसी पे आधारित एक लघुकथा कविता के साथ…. Corona has snatched a lot. But if we don’t give up then victory is sure to happen…. Presenting a short story with poem based on this….
क्या यार….आज भी कोई सनसनाहट नहीं….लगता है आज भी कोई गाड़ी नहीं चलने वाली….आज फिर पेट भर खाए बिना सब जागेंगे…पटरी से कान सटाए हुए सुंदर मन ही मन बुदबुदा उठा। सिग्नल आज भी लाल थे….मानो गाड़ी को न रोक रहे हों….भाग्य को को ही रोक रहे हों। मायूस हो सुंदर घर की तरफ चल पड़ा।
बड़े शहर में आने के बाद तो सुंदर की मौज हो गई थी। कहां गांव में खेतीबाड़ी करके बड़ी मुश्किल से दो जून की रोटी नसीब हो पाती थी और यहां तो मेहनत से ज्यादा मिल जाता था, तभी तो वह अपने परिवार को भी अपने संग लिवा लाया था।
रेलवे स्टेशन के आऊटर के पास बनी झुग्गी – झोंपड़ियों में से एक में परिवार संग रहता था वह। रेलवे स्टेशनों की तरह उस आऊटर पर भी कभी रात न होती थी। कभी कोई आने वाली गाड़ी रुकती तो कभी जाने वाली।
आऊटर के पास खड़े सिग्नल मुस्कुराकर ट्रेनों को चलने – रुकने का इशारा किया करते थे। कभी हरे होते तो कभी लाल। इन्हीं की रोशनी से पटरियां रात भर चमकती रहतीं थीं।
वहां का कोई भी निवासी कभी नौकरी ढूंढने नहीं जाता था….जाना भी क्यों कर था….सभी अपना – अपना काम जो करते थे। बच्चे हों या जवान, सभी कुछ न कुछ बेचा करते थे। जैसे ही कोई गाड़ी रुकती, सभी उस पर टूट पड़ते और कुछ न कुछ कमाई करके खुशी – खुशी घर आ जाते।
सुंदर की सयानी पत्नी छोटे – छोटे समोसे और चटपटी चटनी बनाती। गाड़ी रुकते ही सुंदर जोर से चिल्लाता….
मेरा है छोटू समोसा खास, किसकी चटनी है झक्कास, खुशबू इसकी बड़ी सुहानी, ट्रेन हो जाती है दीवानी…
कभी – कभी सड़क के किनारे बने पिज्जा कॉर्नर से छोटे – छोटे पिज्जा भी लाकर बेचता…जो हाथों हाथ बिक जाते। पीछे – पीछे उसके दोनों लड़के बर्फ वाली बाल्टी में कोल्ड ड्रिंक लेके दौड़ते….जीवन बड़े मजे में कट रहा था, न जाने किसकी नजर लग गई।
सुना था जोर बड़ा रेलवे ‘इंजन’ में है, पर अब जाना जोर तो ”निरंजन” में है….जिसके एक छोटे से किटाणु ने सारे के सारे इंजन रोक दिये।
पटरियों के किनारे बना घर, अब सूना – सूना से क्यों लगता है, जहां दिन – रात खटकतीं थीं पटरियां, अब खटके बिना जी न लगता है, जहां शोर इतना होता था, बात नहीं हो पाती थी, इशारों से चलता था काम, आंखें ही सब समझातीं थीं, कभी खटर – पटर, कभी धमक – धमक, कभी धड़क – धड़क, कभी भड़क – भड़क, इक आती थी, इक जाती थी, इक रूकती थी, इक चलती थी, जब देखो सीटी बजती थी, अब आंखों से ही ओझल हैं, अब जीवन कितना बोझिल है, पटरी सूनी जो हो गई है, जीवन की रेखा थम गई है, कौन जाने किस घड़ी देवदूत कब आएंगें, बुत बने खड़े से यह सिग्नल, फिर लाल – हरे हो जाएंगे।
अब बच्चों का दुख बर्दाश्त न होता था। बहुत सारे लोग अपने गॉंव की ओर पलायन कर रहे थे। सुंदर ने भी कठिन फैसला लिया और जिन पटरियों ने दिन रात कमाई करवाई, उन्हीं पे आज चलके गाँव की ओर जाने को मजबूर हो गए।
हजारों मुश्किलों को सहते गाँव तो पहुँच गए, पर अब करें क्या। इतनी छोटे से खेत में क्या कर पाएंगे।
पर जहां चाह, वहाँ राह। सुंदर ने हार न मानी। उसने परिवार संग मिलकर एक मिट्टी का तन्दूर बनाया और बगल के शहर से समान लाकर छोटे – छोटे पिज्जा बनाने शुरू कर दिए।
अब सुंदर पिज्जा न केवल गाँव वालों को भाता है बल्कि आसपास के गाँवों से भी काफी डिमांड आने लगी है और उसके बदरंग होते जीवन में फिर से नए रंग भरने लगे हैं। उसके जीवन के लाल हो चुके सिग्नल फिर से हरे हो कर उसके भाग्य की रेखा को रंगबिरंगी रोशनी से भर रहे हैं।
If you like this positive story as well as poem of migrants, please comment and share.. Regards, Jasvinder Singh, Himachal Pradesh
खुद को बदकिस्मत मान कर तकदीर के हवाले करने से अच्छा है कि हम नए उत्साह के साथ संघर्षों से जूझ कर अपने बदरंग जीवन में नए रंग भरें और खुश रहें।
कितने भी वेग से मुझे डुबा ले ऐ तकदीर, देख लेना दूने वेग से मैं फिर ऊपर आऊंगा, न उखड़ेगी सांस मेरी डुबाने से तेरे, फेफड़ों में साहस की सांसें भरता जाऊंगा, जब जब भी लेगी परीक्षा तूं मेरी, करेगी जब भी समीक्षा तूं मेरी, करूंगा हर पर्चे को पूरे दिल से मैं हल, होके उत्तीर्ण हर बार दिखलाऊंगा, मिले संग किसी का या जूझूं अकेले, हर इक पल चहकता नजर आऊंगा, रहें चाहे कांटे हर डाल पे मेरे, बीच उन्ही के मैं खिल जाऊंगा, बुझा न पाएगी रोशनी तूं मन की मेरी, बन सितारा मैं नभ पर टिमटिमाऊंगा, भरूंगा रंग सच्चे जीवन में अपने तकदीर नई मैं लिख जाऊंगा तकदीर नई मैं लिख जाऊंगा।
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सुख में अधिक विकार है सुख से आता अहंकार है सुख ही दुख का कारण है दुख ही दुख का निवारण है सुख में दुख है छिपा हुआ दुख में सुख है छिपा हुआ दोनों ही जल की लहरें हैं हर पल दोनों के पहरे हैं पहलू दोनों इक सिक्के के दोनों सबके सिरहाने हैं दोनों ज्वार और भाटा हैं दोनों का गहरा नाता है इक आता है इक जाता है इक संग में दूजा लाता है सुख दुख बिन रह न पाता है दुख सुख बिन न रह पाता है दोनों की मित्रता गहरी है कालिमा ही फिर सुनहरी है हम चाहें सुख ही आए अरे यह विडम्बना कैसी है यदि दुख में न विलाप करें और सुख में न अहंकार करें दोनों को सम कर जानें हम दोनों को ही अपना लें हम फिर सुख आए या दुख आए दोनों में खुद को ढालें हम दोनों में ही ढल जाएं हम।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर Biodiverse Forest, Nalagarh में नालागढ़ साहित्य कला मंच के प्रसिद्ध साहित्यकारों के साथ IFS अधिकारी S. Yashudeep Singh जी के संरक्षण में कवि सम्मेलन में भाग लिया…प्रकृति मां की गोद में बैठ कर कविता पाठ करने में आनंद ही आनंद है…
ओ धरा क्यों सूख रही, क्यों मानवता से रूठ रहीं, कितनी हरियाली थी पहले, जल ही जल था तेरे अंचल में, धन धान्य कन्द और मूल भी थे, क्या खूब रसीले फल फूल भी थे, नदियां सूखीं – मिट रहे जलाशय, ओ धरा बता – क्या तेरा आशय, क्या कहूं पुत्र मैं हूं उदास, अब नहीं रही मानव से आस, लोलुपता इस पर छाई, नहीं याद रही इसको माई, मेरे तन को यह छील रहा, वन पर्वत जलाशय खोद रहा, ले खनिज मेरा – मुझे ही रौंद रहा, कर आविष्कार नए नए आयुधों का, मुझको पल पल ही फूंक रहा, दो युद्ध किए बड़े भीषण ही, तब से बिगड़ा मेरा संतुलन ही, अब यदि तीसरा युद्ध किया, समझो मुझको बर्बाद किया, मेरी क्या गलती पुत्र बता, क्यों रहे यह मानव मुझे सता, मेरे पालन में क्या रही कमी, हर मानव के मन है गमी, ओ मां धरा – बड़ा अनर्थ हुआ, समस्त विकास है व्यर्थ हुआ, कुछ तो इसका भी हल होगा, सब हो पहले सा हरा भरा, कभी तो सुनहरा पल होगा, अब भी यदि मानव ठान ले मन में, मां को कोई कष्ट न दूंगा, जल की एक भी बूंद को मैं, यूंही व्यर्थ न होने दूंगा, बावली कुंए करूंगा निर्मित, हरियाली को करूंगा सिंचित, पर्वत वन को कष्ट न होगा, हर घर में – पथ में वृक्ष लगेगा, मैदान बनेंगे फिर से वन, महके चहकेंगे फिर जीवन – 2 ।।
जीवन में सुख व दुख दोनों ही अपने निर्धारित समय पर आते जाते रहते हैं। सुख के तो कहने ही क्या…वह तो दुख ही है जो बेचैनी, चिंता व अवसाद देता हुआ चिता ही बन जाता है, पर यदि इस चिता रूपी चिंता को चिंतन में परिवर्तित करने का प्रयत्न करें तो मन शांत व स्थिर होना शुरू हो जाता है। Both happiness and sorrow keep coming and going at their fixed time in life. Happiness is amazing. It’s the only sadness that turns into a pyre giving restlessness, anxiety and depression, but if you try to convert this grave-like worry into positive contemplation, then the mind starts to become calm and stable.
चिंता तोड़े तन बदन को निचुड़े सारा मन मस्तिष्क चिंता माने हार पल भर में करे विचारों को संकुचित ग्रीवा झुके हर इक के आगे शब्द न हों मुख से स्फुटित भूले सद् राहें रहे भ्रमित स्थिर न हो पाए चित्त मेल जोल सब छोड़ छाड़ कर एकांत में रहे व्यथित हंसना गाना भूल भाल सब बैठ रोए कोने में नित जिसकी बैचैनी बनती चिंता मृत समान वह रहता जीवित चिंताओं के पार क्षितिज है असीमित व अपरिमित चहुँ ओर प्रकाश की फैलीं किरणें किंचित मात्र भी नहीं तिमिर बरखा बहार संग गुनगुनाए सुगंध बयार में घुल जाए ऐसा हो सकता है सच में जब चिंता चिंतन बन जाए जब चिंता चिंतन बन जाए।
Come, dream with your eyes awake and start making them come true from today itself…
I saw different types of dreams while sleeping at nights Someone was sour Someone was sweet Someone was bitter Someone was astringent Someone was toxic Someone was annoying Happiness in someone Bemoaning in someone Helplessness in someone Found in someone Lost in someone Someone was meaningless Someone with amazing beaty Someone with horrible scenes Saw an angel in someone Saw messenger of death in someone All the dreams I have seen while sleeping till today are all illusions of the mind Only those dreams come true what you see with your awake eyes Accept all challenges to fulfill your dreams Don’t give up till the end Darkness will disappear surely And then everyone will appreciate you.
आईए…जागती आंखों से सपने देखें और उनको सच करने में आज से ही जुट जाएं
अक्सर रातों में सपने देखे मैंने बारम्बार कोई था खट्टा कोई था मीठा कोई था तीखा लाल कोई कसैला कोई विषैला कोई जी का था जंजाल किसी में खुश था किसी में रोता किसी में था बेहाल किसी में पाया किसी में खोया किसी में देखे झोलम झाल किसी में देखा सौंदर्य अद्भुत किसी में रूप दिखे विकराल किसी में देखा देवदूत को किसी में देखा काल सोकर जितने सपने देखे मन के भ्रम थे बेकार सच तो वो होते हैं सपने जो जाग के देखो बारम्बार काम करो उन सपनों ऊपर करो चुनौती स्वीकार अंत समय तक हार न मानो मिट जाएगा अंधकार फिर होगी जय जयकार फिर होगी जय जयकार
ऐ प्यारी सुंदरता! ख्वाहिश रखता है पाने की तुम्हें हर कोई स्त्री हो या पुरूष युवा हो या प्रौढ़ तलाश में तुम्हारी नजर आता है हर कोई मेहरबां हो जाती हो जिस किसी पे भी तुम मन ही मन इठलाता सा नजर आता है सोई नाम भले ही तुम्हारा एक है पर रूप तुम्हारे अनेक हैं वाणी में – शब्दों में बोलों में – गीतों में बात में – व्यवहार में तन पर – मन पर दिलो – दिमाग पर सौम्यता बनकर छा जाती हो तुम प्रकृति पे आच्छादित हो कर मां जैसी मुस्कुराती हो तुम मैं भी तो चाहता हूं हर पल तुम्हें दीवानों की तरह महक जाना चाहता हूं भरकर तुम्हारी सुगंध से फूलों की तरह पर सच तो यह है कि जिनके मन शीशे के मानिंद होते हैं साफ भूल कर वैर – विरोध और सभी बुराईयां कर देते हैं हर इक को माफ उनके दिलों की गहराईयों में समा सी जाती हो तुम अंतर्मन को उनके महका सी जाती हो तुम उनकी आंखों में सदा झिलमिलाती हो तुम दिव्य आभा बन मुख पर चमचमाती हो तुम उनके तन और मन को रोशन सा कर जाती हो तुम।
हम जीवन भर कितनी भी दौड़ भाग कर लें, इस जीवन को असली मान बैठें, परन्तु असल में तो एक दिन रुक ही जाना है और अपने असली घर वापिस जाने के लिए असली चौराहे यानी श्मशान या कब्रस्तान आना ही है, यही वास्तविकता है।
मैं अंधेरी रातों में चौराहे पर खड़ा सोचता रहता हूं कि यह अंधेरे रास्ते कहीं तो जाते होंगे, आगे जाके न जाने कितने मोहल्लों – गलियों और छोटे – छोटे तंग रास्तों से जुड़ जाते होंगे, उनके आगे न जाने कितने मैदान – तालाब – नदियां और पहाड़ आते होंगे, कहीं तो आखिरी छोर होगा इनका, आखिर यह कहां तक जाते होंगे, न जाने कैसे कैसे लोगों से यह टकराते होंगे, हर किसी का वास्ता तो इनसे पड़ता ही है, क्योंकि हर एक इन्हीं से जुड़े घरों में जन्मता है, सोचता हूं हर एक इस चौराहे तक तो आता ही होगा, फिर दूजे रास्तों की खाक छानकर अपने रास्तों पर लौट जाता होगा, कुछ इस चौराहे को श्मशान तो कुछ कब्रस्तान कहते हैं, छोड़ने आते हैं औरों को और लौट जाते हैं, मैं अकेला खड़ा रह जाता हूं यहां यह सोचकर, आखिरकार तो यहां आना ही है, यही तो है घर अपना सही ठिकाना ही यह है, क्यों मैं दौडूं शुरू से आखिर तक, खींचूं लकीरें कि यह रास्ता है मेरा, क्यों न बैठा रहूं यहां उसी की याद में, आखिर इसी के ऊपर तो रहता है हमदम मेरा।।
हमें लगता है कि सब कुछ सही चल रहा है…हम सदा ही रहेंगे…हमें कुछ नहीं होगा और इसी क्रम में एक दिन एक झटके के साथ ही सब कुछ पीछे छूट जाता है और हम फिर से इस अमूल्य जीवन को ऐसे ही समाप्त कर चुके होते हैं। यदि हम पिछली भूलों को स्मरण करते हुए वर्तमान को संवारने के प्रयत्न करें तो हमारा जीवन जीना सार्थक हो सकता है।
कभी जलाया गया कभी दफनाया गया कभी चील कौवों द्वारा नोच – नोच के खाया गया कभी न जाना न समझा क्यों यह हुआ कभी जने बच्चे बन के स्त्री कभी बन पुरूष वन – वन भटकता रहा न जाने किन – किन रूपों में किन – किन योनियों में आता रहा मानव देह की प्रतीक्षा मैं करता रहा चिर युगों पश्चात् फिर से मिली है यह देह मिलते ही पिछला सब विस्मृत हो गया जन्म लेते ही चासनी बनी अहंकार की आज तक उसी में मैं लिपटता रहा जो अब भी न समझा अब भी न जाना संग मेरे घटित हुआ है यह सब कहीं अब भी यदि यह नहीं माना तो फिर से यह क्रम चलता रहेगा चलेगी चक्की समय की मैं पिसता रहूँगा फिर मिलेगी देह तो किसी न किसी की संघर्ष जीवन का फिर से होता रहेगा कुछ पाऊँगा और कुछ खोता रहूँगा फिर मिलेगी यह देह और मैं सोता रहूँगा हे भगवन् कर दे वर्षा तूं अपनी कृपा की दे उतार गन्दगी – चासनी यह मेरी दे सद्बुद्धि हो जाए सद्गति मेरी मिले सुमति – नष्ट हो यह कुमति मेरी फिर न भुगतने पड़ें और दुष्परिणाम खो जाऊं तुझमें ही भूल के स्वयं को सदा लेता रहूँ मैं तुम्हारा ही नाम सदा लेता रहूँ मैं तुम्हारा ही नाम।।
वाह गुरु प्रकाश हुआ जब तेरा सूरज को नया नूर मिला चमके तारे अजब चमक से चंद्रमा का प्रकाश बढ़ा मृत प्रायः समाज के भीतर नई उमंग नया जोश चढ़ा मुरझाते धर्म के पौधों में नव जीवन का संचार हुआ रोती मिटती मरती जनता ने सन्त सिपाही रूप धरा अमृत पाकर धन्य हुए सब सबमें शक्ति का रूप दिखा माता पिता पुत्र सब वारे तब ही तो सच धर्म बचा हे गोबिंद तेरी क्या कीरत गाएं तुझसे ही भारत वर्ष सजा तुझसे ही भारत वर्ष सजा
जैसे कमल का फूल डूबने की चिंता किए बिना मस्त रह कर जल पर मुस्कुराते हुए तैरता रहता है…आईए, इसी प्रकार हम भी चिंता के भार को उतार कर हल्के हों और निश्चिंतता रूपी जल पर तैरें…
गहन सोच में डूब रहा यूं नाव नदी में डूब रही ज्यूं उलझे विचार मन मष्तिष्क में यूं धागों के गुच्छे उलझे ज्यूं सोच विचार हुए व्यर्थ यूं मुरझाया पौधा बिन जल ज्यूं गहरी चिंता में खिन्न हुआ यूं बाजी जुए में हार गया ज्यूं उलझन का कीचड़ पकड़े यूं गहरी अथाह दलदल जकड़े ज्यूं त्याग कूप चिंता का अब यूं तैरे कमल पुष्प जल पे ज्यूं बन सहज सरल अब फिर से यूं नन्हा मासूम शिशु होता ज्यूं
जब जली चिता तब हुआ चकित डरा व्यर्थ क्यों जीवन भर लपट आग की मुझे जलाए खड़ा तो हूँ मैं यहाँ इधर नहीं तपिश लग रही है कोई कैसा यह चमत्कार है न मुख से निकली चीख है कोई सब तपिश – जलन बेकार है, न अपनों के जयकारे हैं न दुश्मन की ललकार है सब देखें स्वयं को ऐंठ – ऐंठ के सबका ही अहंकार है सब चले छोड़ के मुझको यूँ ही सोचें अब यह बेकार है अब नहीं है रिश्ता किसी से कोई न ही कोई तकरार है, सब सोच रहे यह गया है मर पर अब तो मुझको सुधि हुई जीवन भर ही तो मरा रहा तभी तो यह सब गति हुई हंसने – रोने में श्वांस गंवाए तभी तो मेरी क्षति हुई, काश…हे भगवन्! फिर दे चोला कदम यह तेरी ओर चलें रहे संग तेरे प्यारों का अंत में हम और तुम मिलें अंत में हम और तुम मिलें।
Let’s fight with the fierce storms that come in life and win at any cost with the inspirations of http://www.keyofallsecret.com
I must get down into the booming sea, I’ll have to bear the wrath of the raging waves, I’ll have to defend myself from the prickly winds that sre sharp like knife, I have to defend my ship that is shattering like a straw, I can’t see myself as a loser…any how I’ve to win by battling, those golden moments in life will come again, When the blue sea will calm down, The sun’s rays would be spreading a golden halo over the waves, my little ship will float again on the huge chest of calm waves, The gusts of cool wind will return again to sing the lullaby to me, I’ll take sound sleep again to have sweet dreams.
उतरना ही होगा मुझे फिर से उफनते हुए समुंद्र में सहना ही होगा क्रोध प्रचण्ड होती जा रहीं लहरों का खुद को झोंकना ही होगा चाकू सी धारदार हवाओं के अनगिनत प्रहारों के बीच स्वयं ही करना ही होगा बचाव तिनके की तरह बिखरते हुए मेरे जहाज का नहीं देख सकता यूं ही टूटते हुए खुद को जूझना ही होगा हर हाल मुझे जीतना ही होगा फिर से आएंगे जीवन में वह सुनहरे पल शांत हो जाएगा नीला समुंद्र बिखेर रहीं होंगी सूरज की किरणें स्वर्णिम सी आभा तैराएंगी फिर से शांत लहरें मेरे छोटे से जहाज को अपने विशाल सीने पर मस्त पवन के झोंके आएंगे फिर से मुझे सुनाने को लोरी लूंगा एक झपकी प्यारी सी एक बार फिर से मीठे सपनों में खो जाने के लिए
If you think carefully, everything in this world is false…because when life is not true, then what else will be true. Only Almighty God, which is sitting within us, is true
This world is illusion only, All you want will be lost, All you want will be snached, All you want will be robbed, Lie is spread everywhere, Whatever we believe that is to be the true – that’s all lie, Like when a balloon explodes – the air leaves in an instant, Everything is illusion only – not truth The truth is hidden only within ourselves, Leave outside – peep inside, The truth is shining in heart as gem.
यहां जो चाहो मिट जाता है यहां जो चाहो छिन जाता है यहां जो रखो लुट जाता है यहां हर ओर है फैला झूठ सच समझा – मिथ्या बन जाता है यहां नहीं है सच में कुछ भी दृष्टि का फैलाव है गुब्बारे ज्यों भरी पवन पल में फूटे बिखराव है सच यहां नही है वहां नहीं है केवल भीतर छुपा हुआ है बाहर छोड़ जब झांका भीतर सच रत्न ह्रदय में जड़ा हुआ है।
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